हनुमान चालीसा शब्दशः अर्थ | Word to Word Translation of Hanuman Chalisa in Hindi

दोहा:

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

शब्दार्थ:

  • श्रीगुरु: श्री गुरु (सर्वोच्च गुरु)
  • चरन: चरण (पैर)
  • सरोज: कमल
  • रज: धूल
  • निज: अपना
  • मन: मन (हृदय)
  • मुकुर: दर्पण
  • सुधारि: सुधारकर
  • बरनऊं: वर्णन करता हूँ
  • रघुबर: श्रीराम (रघुकुल के श्रेष्ठ)
  • बिमल: निर्मल, शुद्ध
  • जसु: यश, कीर्ति
  • जो: जो (वह)
  • दायक: देने वाला
  • फल चारि: चार फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष)

अर्थ: श्री गुरु के चरणों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ करके, मैं श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।

शब्दार्थ:

  • बुद्धिहीन: बुद्धि (समझ) से हीन (विहीन, कम)
  • तनु: शरीर
  • जानिके: जानकर
  • सुमिरौं: स्मरण करता हूँ (प्रार्थना करता हूँ)
  • पवन-कुमार: पवन पुत्र (हनुमान जी)
  • बल: शक्ति
  • बुद्धि: बुद्धि (समझ)
  • विद्या: ज्ञान
  • देहु: दो (प्रदान करो)
  • मोहिं: मुझे
  • हरहु: हर लो (दूर कर दो)
  • कलेश: कष्ट
  • विकार: दोष, बुराइयाँ

अर्थ: हे पवन पुत्र हनुमान जी! मैं अपने आप को बुद्धिहीन समझकर आपका स्मरण करता हूँ। कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और ज्ञान प्रदान कीजिए, और मेरे सभी कष्टों और दोषों का नाश कर दीजिए।

चौपाई 1:

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।

शब्दार्थ:

  • जय: विजय हो
  • हनुमान: हनुमान जी
  • ज्ञान: ज्ञान
  • गुण: गुण
  • सागर: समुद्र
  • कपीस: वानरों के राजा
  • तिहुँ लोक: तीनों लोक (स्वर्ग, धरती, पाताल)
  • उजागर: प्रकाशमान

अर्थ: हे हनुमान जी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं, आपकी जय हो। हे वानरों के राजा! आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है।

चौपाई 2:

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

शब्दार्थ:

  • रामदूत: श्रीराम के दूत
  • अतुलित: जिसका तुलना न हो सके
  • बलधामा: बल का धाम
  • अंजनि-पुत्र: अंजनी का पुत्र
  • पवनसुत: पवन देव के पुत्र

अर्थ: आप श्रीराम के दूत और असीम बलशाली हैं। आपका नाम अंजनी पुत्र और पवन देव के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध है।

चौपाई 3:

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

शब्दार्थ:

  • महाबीर: महान वीर
  • बिक्रम: पराक्रमी
  • बजरंगी: वज्र जैसे शरीर वाले
  • कुमति: बुरी बुद्धि
  • निवार: नष्ट करने वाले
  • सुमति: अच्छी बुद्धि
  • संगी: साथी

अर्थ: हे महावीर बजरंग बली! आप महान पराक्रमी हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और अच्छी बुद्धि के साथी हैं।

चौपाई 4:

कंचन वरण विराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

शब्दार्थ:

  • कंचन: सोने के समान
  • वरण: रंग
  • विराज: सुशोभित
  • सुबेसा: सुंदर वेश
  • कानन: कान
  • कुण्डल: कुण्डल (बाली)
  • कुंचित: घुंघराले
  • केसा: बाल

अर्थ: आपका रंग सोने के समान चमकदार है और आप सुंदर वस्त्रों से सुशोभित हैं। आपके कानों में कुण्डल (बाली) हैं और आपके बाल घुंघराले हैं।

चौपाई 5:

हाथ वज्र और ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे।।

शब्दार्थ:

  • हाथ: हाथ में
  • वज्र: इन्द्र का अस्त्र (वज्र)
  • ध्वजा: ध्वज (झंडा)
  • बिराजे: सुशोभित
  • काँधे: कंधे पर
  • मूँज: मूँज की रस्सी
  • जनेऊ: जनेऊ (पवित्र धागा)
  • साजे: सुसज्जित

अर्थ: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा सुशोभित हैं, और आपके कंधे पर जनेऊ धारण किया हुआ है।

चौपाई 6:

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

शब्दार्थ:

  • शंकर: भगवान शिव
  • सुवन: पुत्र
  • केसरी: केसरी (हनुमान जी के पिता)
  • नंदन: पुत्र
  • तेज: चमक
  • प्रताप: पराक्रम
  • महा: महान
  • जग: संसार
  • वंदन: वंदनीय

अर्थ: आप शिव के अवतार हैं और केसरी के पुत्र हैं। आपकी तेजस्विता और पराक्रम महान है, और समस्त संसार आपका वंदन करता है।

चौपाई 7:

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

शब्दार्थ:

  • विद्यावान: विद्या से परिपूर्ण
  • गुनी: गुणी
  • अति: अत्यधिक
  • चातुर: चतुर
  • राम काज: श्रीराम का कार्य
  • करिबे: करने के लिए
  • को: को
  • आतुर: तत्पर

अर्थ: आप विद्या में निपुण, गुणवान और अत्यधिक चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

चौपाई 8:

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

शब्दार्थ:

  • प्रभु: श्रीराम
  • चरित्र: गुण और कार्य
  • सुनिबे: सुनने में
  • को: के लिए
  • रसिया: प्रेमी
  • राम: श्रीराम
  • लखन: लक्ष्मण जी
  • सीता: सीता जी
  • मन: मन
  • बसिया: बसे हुए हैं

अर्थ: आप श्रीराम के चरित्र को सुनने में आनंदित होते हैं और राम, लक्ष्मण और सीता के हृदय में सदा बसे रहते हैं।

चौपाई 9:

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

शब्दार्थ:

  • सूक्ष्म रूप: छोटा रूप
  • धरि: धारण करके
  • सियहिं: सीता जी को
  • दिखावा: दिखाया
  • बिकट: विकराल
  • रूप: रूप
  • लंक: लंका
  • जरावा: जलाया

अर्थ: आपने छोटा रूप धारण करके सीता जी को दर्शन दिया और विकराल रूप धारण करके लंका को जलाया।

चौपाई 10:

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे।।

शब्दार्थ:

  • भीम रूप: भयंकर रूप
  • धरि: धारण करके
  • असुर: राक्षस
  • सँहारे: मारे
  • रामचन्द्र: श्रीराम
  • काज: कार्य
  • सँवारे: सफल किए

अर्थ: आपने भयंकर रूप धारण करके असुरों (राक्षसों) को मारा और श्रीराम के कार्यों को सफल किया।

चौपाई 11:

लाय सजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए।।

शब्दार्थ:

  • लाय: लाकर
  • सजीवन: संजीवनी बूटी
  • लखन: लक्ष्मण जी
  • जियाए: जीवित किया
  • श्रीरघुबीर: श्रीराम
  • हरषि: प्रसन्न होकर
  • उर: ह्रदय
  • लाए: लगाया (गले से लगाया)

अर्थ: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवनदान दिया, जिससे श्रीराम अत्यंत प्रसन्न होकर आपको अपने हृदय से लगा लिया।

चौपाई 12:

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

शब्दार्थ:

  • रघुपति: श्रीराम
  • कीन्ही: की
  • बहुत: बहुत
  • बड़ाई: प्रशंसा
  • तुम: तुम (हनुमान जी)
  • मम: मेरे
  • प्रिय: प्रिय
  • भरतहि: भरत के समान
  • सम: समान
  • भाई: भाई

अर्थ: श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय भाई हो।

चौपाई 13:

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

शब्दार्थ:

  • सहस बदन: हजारों मुख
  • तुम्हरो: तुम्हारा (हनुमान जी का)
  • जस: यश
  • गावैं: गाते हैं
  • अस कहि: ऐसा कहकर
  • श्रीपति: श्रीराम
  • कंठ: गले
  • लगावैं: लगाते हैं

अर्थ: श्रीराम ने कहा कि हजारों मुख आपके यश का गुणगान करते हैं, और ऐसा कहकर श्रीराम ने आपको अपने गले से लगा लिया।

चौपाई 14:

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

शब्दार्थ:

  • सनकादिक: सनक, सनंदन आदि ऋषि
  • ब्रह्मादि: ब्रह्मा जी आदि
  • मुनीसा: मुनियों के स्वामी
  • नारद: नारद मुनि
  • सारद: सरस्वती देवी
  • सहित: सहित (साथ में)
  • अहीसा: शेषनाग

अर्थ: सनकादि ऋषि, ब्रह्मा जी, नारद मुनि, सरस्वती जी और शेषनाग सभी आपके यश का गुणगान करते हैं।

चौपाई 15:

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।

शब्दार्थ:

  • जम: यमराज
  • कुबेर: धन के देवता
  • दिगपाल: दिशाओं के रक्षक देवता
  • जहाँ ते: जहाँ से
  • कवि: कवि
  • कोविद: विद्वान
  • कहि सके: कह सकते हैं
  • कहाँ ते: कहाँ तक

अर्थ: यमराज, कुबेर, और दिगपाल (दिशाओं के रक्षक देवता) भी आपके यश का वर्णन नहीं कर सकते। कवि और विद्वान भी आपके गुणों का पूरा वर्णन नहीं कर सकते।

चौपाई 16:

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

शब्दार्थ:

  • तुम: आपने
  • उपकार: उपकार (सहायता)
  • सुग्रीवहि: सुग्रीव को
  • कीन्हा: किया
  • राम: श्रीराम
  • मिलाय: मिलाकर
  • राज पद: राजा का पद
  • दीन्हा: दिया

अर्थ: आपने सुग्रीव पर उपकार किया और श्रीराम से उनका मिलन करवाकर उन्हें राजा का पद दिलवाया।

चौपाई 17:

तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।

शब्दार्थ:

  • तुम्हरो: तुम्हारा (हनुमान जी का)
  • मन्त्र: सलाह
  • विभीषण: विभीषण
  • माना: स्वीकार किया
  • लंकेश्वर: लंका के राजा
  • भए: बने
  • सब जग: समस्त संसार
  • जाना: जानता है

अर्थ: आपकी सलाह को विभीषण ने माना, जिसके परिणामस्वरूप वे लंका के राजा बने। यह बात समस्त संसार जानता है।

चौपाई 18:

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

शब्दार्थ:

  • जुग: युग
  • सहस्र: हजार
  • जोजन: योजन (माप की इकाई)
  • पर: परे (दूर)
  • भानू: सूर्य
  • लील्यो: निगल लिया
  • ताहि: उसे
  • मधुर फल: मीठा फल
  • जानू: समझकर

अर्थ: हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया।

चौपाई 19:

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं।।

शब्दार्थ:

  • प्रभु: श्रीराम
  • मुद्रिका: अंगूठी
  • मेलि: रखकर
  • मुख: मुँह
  • माहीं: में
  • जलधि: समुद्र
  • लाँघि: लांघकर
  • गए: चले गए
  • अचरज: आश्चर्य
  • नाहीं: नहीं

अर्थ: आपने श्रीराम की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ दिया, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

चौपाई 20:

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

शब्दार्थ:

  • दुर्गम: कठिन
  • काज: कार्य
  • जगत: संसार
  • के जेते: जितने भी
  • सुगम: सरल
  • अनुग्रह: कृपा
  • तुम्हरे तेते: आपकी कृपा से

अर्थ: संसार में जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।

चौपाई 21:

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

शब्दार्थ:

  • राम दुआरे: राम के द्वार
  • तुम: तुम (हनुमान जी)
  • रखवारे: रक्षक
  • होत न: नहीं होती
  • आज्ञा: आदेश
  • बिनु: बिना
  • पैसारे: प्रवेश

अर्थ: आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं, आपकी आज्ञा के बिना कोई वहाँ प्रवेश नहीं कर सकता।

चौपाई 22:

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।

शब्दार्थ:

  • सब: सभी
  • सुख: सुख
  • लहै: पाते हैं
  • तुम्हारी: आपकी
  • सरना: शरण में
  • तुम: तुम (हनुमान जी)
  • रक्षक: रक्षक (रक्षा करने वाले)
  • काहू: किसी को
  • डरना: डरने की आवश्यकता

अर्थ: आपकी शरण में आने से सभी सुख प्राप्त करते हैं, जिनका आप रक्षक हैं उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं होता।

चौपाई 23:

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।

शब्दार्थ:

  • आपन: अपना
  • तेज: बल, तेज
  • सम्हारो: नियंत्रित करते हो
  • आपै: स्वयं
  • तीनों लोक: तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल)
  • हाँक: ललकार, गर्जना
  • तें: से
  • काँपै: काँपते हैं

अर्थ: आप अपने तेज को स्वयं ही नियंत्रित रखते हैं, और आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप उठते हैं।

चौपाई 24:

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

शब्दार्थ:

  • भूत: भूत
  • पिशाच: पिशाच
  • निकट: पास
  • नहिं आवै: नहीं आते
  • महाबीर: हनुमान जी (महावीर)
  • नाम: नाम
  • सुनावै: सुनते हैं

अर्थ: जब कोई महावीर हनुमान जी का नाम लेता है, तो भूत-प्रेत और पिशाच उसके पास भी नहीं आते।

चौपाई 25:

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

शब्दार्थ:

  • नासै: नाश करता है
  • रोग: रोग (बीमारी)
  • हरै: हरता है
  • सब: सभी
  • पीरा: पीड़ा (दुख)
  • जपत: जपते हैं
  • निरंतर: लगातार
  • हनुमत: हनुमान जी
  • बीरा: वीर

अर्थ: जो निरंतर हनुमान जी का जप करते हैं, उनके सभी रोग और पीड़ा का नाश हो जाता है।

चौपाई 26:

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

शब्दार्थ:

  • संकट: संकट (मुसीबत)
  • तें: से
  • हनुमान: हनुमान जी
  • छुड़ावै: छुड़ाते हैं
  • मन: मन से
  • क्रम: कर्म से (कार्य से)
  • वचन: वचन (वाणी)
  • ध्यान: ध्यान (स्मरण)
  • जो: जो
  • लावै: लगाते हैं

अर्थ: हनुमान जी उन लोगों को संकट से बचाते हैं, जो अपने मन, वचन और कर्म से उनका ध्यान करते हैं।

चौपाई 27:

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।

शब्दार्थ:

  • सब: सब पर (सबसे ऊपर)
  • राम: श्रीराम
  • तपस्वी: तपस्या करने वाले
  • राजा: राजा
  • तिन: उनके
  • काज: कार्य
  • सकल: सभी
  • तुम: तुम (हनुमान जी)
  • साजा: संपन्न किए

अर्थ: तपस्वी राजा श्रीराम सबसे ऊपर हैं, और आपने उनके सभी कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न किया।

चौपाई 28:

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।

शब्दार्थ:

  • और: अन्य
  • मनोरथ: इच्छाएँ
  • जो: जो भी
  • कोई: कोई (व्यक्ति)
  • लावै: लाता है (रखता है)
  • सोइ: वही
  • अमित: असीमित
  • जीवन: जीवन के
  • फल: फल
  • पावै: पाता है

अर्थ: जो भी व्यक्ति आपके सामने अपनी अन्य इच्छाएँ लेकर आता है, वह असीमित जीवन फल प्राप्त करता है।

चौपाई 29:

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।

शब्दार्थ:

  • चारों जुग: चारों युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग)
  • परताप: पराक्रम
  • तुम्हारा: आपका
  • है: है
  • परसिद्ध: प्रसिद्ध
  • जगत: संसार
  • उजियारा: प्रकाश

अर्थ: आपके पराक्रम की महिमा चारों युगों में फैली हुई है, और आपकी कीर्ति संसार में प्रकाशमान है।

चौपाई 30:

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

शब्दार्थ:

  • साधु: साधु
  • संत: संत
  • के तुम: के आप
  • रखवारे: रक्षक
  • असुर: राक्षस
  • निकंदन: संहारक
  • राम: श्रीराम
  • दुलारे: प्यारे

अर्थ: आप साधु-संतों के रक्षक हैं और असुरों के संहारक हैं। आप श्रीराम के अत्यंत प्रिय हैं।

चौपाई 31:

अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन्ह जानकी माता।।

शब्दार्थ:

  • अष्टसिद्धि: आठ सिद्धियाँ
  • नव निधि: नौ प्रकार की निधियाँ (धन)
  • दाता: देने वाले
  • अस: ऐसा
  • वर: वरदान
  • दीन्ह: दिया
  • जानकी माता: माता सीता

अर्थ: माता सीता ने आपको वरदान दिया है कि आप अष्टसिद्धि और नव निधि के दाता हैं (यानी आप जिसे चाहें उसे आठों सिद्धियाँ और नौ प्रकार की निधियाँ दे सकते हैं)।

चौपाई 32:

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

शब्दार्थ:

  • राम रसायन: राम का अमृत (राम नाम)
  • तुम्हरे पासा: तुम्हारे पास
  • सदा: सदा
  • रहो: रहो
  • रघुपति: श्रीराम
  • के दासा: के सेवक

अर्थ: आपके पास राम नाम का अमृत है, और आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहते हैं।

चौपाई 33:

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।

शब्दार्थ:

  • जनम जनम: जन्मों के
  • दुख: दुख
  • बिसरावै: भुला देता है

अर्थ: आपके भजन से व्यक्ति श्रीराम को प्राप्त कर लेता है, और उसके जन्म-जन्मांतर के दुख समाप्त हो जाते हैं।

चौपाई 34:

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

शब्दार्थ:

  • अन्त काल: मृत्यु के समय
  • रघुबर पुर: श्रीराम का धाम (अयोध्या)
  • जाई: जाता है
  • जहाँ: जहाँ
  • जन्म: जन्म
  • हरि-भक्त: भगवान के भक्त
  • कहाई: कहलाता है

अर्थ: मृत्यु के समय भक्त श्रीराम के धाम जाता है, जहाँ उसका हर जन्म हरि-भक्त के रूप में होता है।

चौपाई 35:

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

शब्दार्थ:

  • और देवता: अन्य देवता
  • चित्त न धरई: ध्यान नहीं लगाता
  • हनुमत सेइ: हनुमान जी की सेवा
  • सर्ब सुख: सभी सुख
  • करई: प्रदान करती है

अर्थ: जो व्यक्ति अन्य देवताओं का ध्यान नहीं करता और केवल हनुमान जी की सेवा करता है, उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।

चौपाई 36:

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

शब्दार्थ:

  • संकट कटै: संकट समाप्त होते हैं
  • मिटै: मिट जाते हैं
  • सब पीरा: सभी कष्ट
  • जो सुमिरै: जो स्मरण करता है
  • हनुमत: हनुमान जी
  • बलबीरा: शक्तिशाली वीर

अर्थ: जो भी हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और सभी पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।

चौपाई 37:

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

शब्दार्थ:

  • जय जय जय: विजय हो, जय हो
  • हनुमान: हनुमान जी
  • गोसाईं: स्वामी
  • कृपा करहु: कृपा करें
  • गुरुदेव: गुरु
  • की नाईं: के समान

अर्थ: हनुमान जी की जय हो! आप कृपा करें, जैसे गुरुदेव अपने शिष्य पर कृपा करते हैं।

चौपाई 38:

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

शब्दार्थ:

  • जो: जो कोई
  • शत बार: सौ बार
  • पाठ कर: पाठ करता है
  • कोई: कोई व्यक्ति
  • छूटहि: मुक्त हो जाता है
  • बन्दि: बंधन से
  • महा सुख: महान आनंद
  • होई: प्राप्त होता है

अर्थ: जो व्यक्ति सौ बार इस पाठ को करता है, वह बंधन से मुक्त हो जाता है और उसे महान सुख की प्राप्ति होती है।

चौपाई 39:

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

शब्दार्थ:

  • जो: जो कोई
  • यह: यह (हनुमान चालीसा)
  • पढ़ै: पढ़ता है
  • हनुमान चालीसा: हनुमान चालीसा
  • होय सिद्धि: सिद्धि प्राप्त होती है
  • साखी: साक्षी
  • गौरीसा: शिवजी

अर्थ: जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है। इसका साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।

चौपाई 40:

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

शब्दार्थ:

  • तुलसीदास: तुलसीदास (चालीसा के रचयिता)
  • सदा: सदा
  • हरि चेरा: भगवान राम का सेवक
  • कीजै: कीजिए
  • नाथ: स्वामी
  • हृदय महँ: हृदय में
  • डेरा: निवास

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं सदा श्रीराम का सेवक हूँ, हे नाथ (हनुमान जी), मेरे हृदय में निवास कीजिए।

दोहा:

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

शब्दार्थ:

  • पवनतनय: पवन के पुत्र (हनुमान जी)
  • संकट हरन: संकटों को हरने वाले
  • मंगल मूरति रूप: मंगलमूर्ति स्वरूप
  • राम लखन: राम और लक्ष्मण
  • सीता सहित: सीता माता के साथ
  • हृदय: ह्रदय
  • बसहु: निवास करो
  • सुर भूप: देवताओं के राजा

अर्थ: हे पवनसुत हनुमान जी, जो संकटों का नाश करते हैं और मंगलमूर्ति हैं, आप राम, लक्ष्मण और सीता माता के साथ मेरे हृदय में निवास करें।

__________

यदि आप हनुमान चालीसा का शब्दार्थ जानने की इच्छा रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगा। यहां हनुमान चालीसा के प्रत्येक श्लोक का शब्द-प्रति-शब्द अर्थ और व्याख्या दी गई है, जिससे आपको हनुमान जी की महिमा को गहराई से समझने में मदद मिलेगी। चाहे आप Hanuman Chalisa word to word meaning in Hindi ढूंढ रहे हों या Hanuman Chalisa translation, इस सरल व्याख्या के माध्यम से आप हनुमान जी के भक्ति और उनकी शक्तियों को समझ सकते हैं। इसे पढ़कर आप न केवल शास्त्र का ज्ञान बढ़ा सकते हैं, बल्कि आध्यात्मिक बल भी प्राप्त कर सकते हैं।

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