पक्षी आत्महत्या करते हैं भारत के इस गाँव में!

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भारत के उत्तर-पूर्व में मौजूद असम राज्य अपनी प्राकृतिक खूबसूरती, शांति और सांस्कृतिक विरासत कि वजह से हमेशा से ही यहाँ पर घुमने आने वाले पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र रहा है। यहाँ के चाय के बाग़, घने जंगल, शुद्ध वातावरण और यहाँ पर बहती ब्रह्मपुत्र नदी यहाँ पर आने वाले पर्यटकों को विशेष आकर्षित करती है.

पिछले कई वर्षों से यहां पर अलग-अलग संस्कृति के लोग बसे हैं, जिससे यहाँ कि संस्कृति को एक अलग ही पहचान मिली है। इसी वजह से असम कि सभ्यता और संस्कृति को एक विशेष दर्जा प्राप्त है।

यहाँ कि ख़ूबसूरती जितनी अच्छी दिखती है वह अपने अन्दर उतने ही रहस्य समेटे हुए है!!

असम राज्य का जतिंगा गांव पक्षी आत्महत्या की घटनाओं कि वजह से हमेशा सुर्खियाँ बटोरता रहता है।

जापान के माउंट फूजी के घने जंगल जिस तरह से इंसानों कि आत्महत्या करने के लिए जाने जाते हैं उसी तरह मानसून के मौसम में यहाँ के आसमान की रहस्यमयी रात में मंडराने लगता है मौत का काला साया। यहाँ पर पक्षियों का झुण्ड का झुण्ड आता है और आत्महत्या करता है।

पक्षियों के इस तरह से एक साथ आत्महत्या करने के पीछे क्या रहस्य छुपा हुआ है? इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। पक्षियों की आत्महत्या की वजह जानने के लिए यहाँ पर कई शोध हो चुके हैं, मगर आजतक प्रकृति के इस रहस्यमयी राज से पर्दा नहीं उठ पाया है। असम के कछार स्थित इस घाटी के रहस्यों को जानना जरूरी है।

कहाँ पर है जतिंगा?

जतिंगा गांव असम की राजधानी गुवाहाटी से करीब 300 किमी दूर है। इस गाँव के पास जो शहर है (हाफलॉन्ग टाउन) वह यहां से तक़रीबन 9 किमी दूर है। यहाँ से इस गाँव में पहुँचने के लिए ऑटो भी चलते हैं. इस गांव की आबादी 2500 के आसपास है और यहां पर खासी-पनार जनजाति के लोग रहते हैं। यह गाँव पहाड़ों से घिरा हुआ एक आकर्षक और दर्शनीय स्थल है। यहाँ चारों तरफ प्राकृतिक सुन्दरता बिखरी हुई है.

प्रवासी पक्षी भी करते हैं आत्महत्या

जतिंगा में जो सबसे रहस्यमयी चीज़ है वह है यहाँ पर प्रवासी पक्षियों का एक बड़ी संख्या में आकर आत्महत्या करना। इस घटना को प्राकृतिक घटना ही समझा जाता है, क्योंकि इसके पीछे क्या वजह है, यह आजतक कोई भी नहीं समझ पाया है। इतनी अधिक संख्या में पक्षियों की आत्महत्या अब वैज्ञानिकों को भी अपनी तरफ खींचने लगी है। ऐसा भी नहीं है कि यहाँ पर सिर्फ प्रवासी पक्षी ही आत्महत्या करने के लिए आते हैं, जबकि यहाँ के स्थानीय पक्षी भी इस जगह पर आत्महत्या करते हुए देखे गए हैं।

कब करते हैं पक्षी आत्महत्या?

बरसात के मौसम में यहाँ पर पक्षियों की आत्महत्या करने की बातें सामने आती हैं। इन महीनों यानी सितम्बर से नवम्बर में शाम को 6 बजे से लेकर रात को करीब 10 बजे तक ही पक्षियों में आत्महत्या करने की प्रवृति देखी जाती है, यह सिलसिला सिर्फ रात के समय में देखा जाता है जब यहाँ पर अँधेरा होने लगता है और यहाँ पर धुंध बढ़ने लगती है। इस समय में पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. यहां के स्थानीय लोग इन पक्षियों को कभी भी न तो परेशान करते हैं और न ही वे इन्हें मारने की कोशिश करते हैं।

बुरी आत्माओं का काम

यहाँ के स्थानीय लोगों को यह मानना भी है कि इस गाँव पर किसी आत्मा या प्रेत का साया है। गाँव के लोगों का यह मानना है कि इन पक्षियों के भेष में बुरी आत्माएं उनके इस गांव पर हमला करती हैं। जबकि कुछ लोगों का तो यह मानना है कि पक्षियों के सिर्फ कुछ ही प्रजातियां जो उन बुरी प्रेत आत्माओं की बात नहीं मानती हैं वे उन्हें मार देती हैं।

एक महत्वपूर्ण और रहस्यमयी बात यह है कि यहाँ पर ज्यादातर अवयस्क पक्षी ही आत्महत्या करते हैं।

1960 में सामने आई यह घटना

एडवर्ड पिचर्ड गी नाम के एक ब्रिटिश भारतीय ने जो कि प्रकृति प्रेमी था, वह 1960 के दशक में इस घटना को सबसे पहले सामने लाया। वे एक मशहूर पक्षी-विज्ञानी सलीम अली के साथ इस जतिंगा गाँव में गए थे। उस समय ये इस रहस्य के इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि यहाँ पर मौजूद तेज हवा और कोहरा यहाँ पर हो रही पक्षियों कि मौत का कारण है। एक रिसर्च के अनुसार यह भी पाया गया कि अधिकतर अवयस्क पक्षी जो यहाँ पर अधिक संख्या में मरते हैं वो तेज हवा को सह नहीं पाते हैं और वे गांव से आ रही रोशनी की तरफ जाते समय हवा के तेज बहाव की चपेट में आ जाते हैं और घरों या पेड़ों से टकराकर मर जाते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना

भारत सरकार ने इस अनसुलझे रहस्य को सुलझाने के लिए प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सेन गुप्ता को नियुक्त किया था। डॉ. गुप्ता ने इस जगह पर काफी लंबे समय तक अध्ययन किया और पाया कि पक्षियों की आत्महत्या की वजह यहाँ का मौसम और यहाँ की चुम्बकीय शक्तियों हैं।

उन्होंने इस बारे में और आगे बताया कि बारिश के मौसम में यहाँ पर जब कोहरा छाया रहता है और तेज हवा चल रही होती है, उस शाम के समय में जतिंगा घाटी की चुम्बकीय शक्ति में एक अलग ही बदलाव आ जाता है और इस परिवर्तन की वजह से ही पक्षी यहाँ पर असामान्य व्यवहार करते हैं. और इसी बदलाव की वजह से वे रोशनी की तरफ भागते हैं और हादसे का शिकार होते हैं। इससे बचने के लिए उन्होंने यह सलाह दी कि ऐसे समय में गाँव में रोशनी करने से जितना हो सके उतना बचना चाहिए।

इस सलाह से यहाँ पर होने वाली पक्षियों की मौत में 40% की कमी आई है.

हालांकि वैज्ञानिक कुछ ठोस बात कह पाने की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा जतिंगा घाटी की विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण होता है, तो कुछ राज्य में होने वाली वर्षा को इससे जोड़कर देखते हैं।

प्राकृतिक आपदा से सम्बन्ध

वैज्ञानिकों के एक शोध से पता चलता है कि यहाँ पर मरने वाले पक्षियों में जो प्रजातियाँ पायी गयी हैं वे ज्यादातर पानी के आसपास रहने वाली प्रजातियां हैं। इससे इस बात का संबंध राज्य में होने वाली वर्षा और बाढ़ से लगाकर देखा जाता है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि एक शोध से यह पता चला है कि जिस साल पक्षियों ने ज्यादा आत्महत्या की है, उस साल राज्य में अधिक बारिश हुई है और बाढ़ का प्रकोप भी ज्यादा रहता है। अगर देखा जाए तो वर्ष 1988 में यहाँ पर सबसे अधिक पक्षी मरे थे और इसी साल राज्य में सबसे अधिक बारिश हुई थी और बाढ़ का प्रकोप सबसे अधिक था।

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